हिन्दी कहानी
के पात्र सामान्य कोटि के मजदूर, किसान आदि पात्र हैं जिनका सम्बन्ध ग्रामों और नगरों के
(एक) काशी जी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान करके एक मनुष्य बड़ी व्यग्रता के साथ गोदौलिया की तरफ़ आ रहा था। एक हाथ में मैली-सी तौलिया से लपेटी हुई भीगी धोती और दूसरे में सुरती की गोलियों की कई डिबियाँ और सुँघनी की एक पुड़िया थी। उस समय दिन के ग्यारह बजे बंग महिला (राजेंद्रबाला घोष)
चंदनपुर राज्य की समृद्धि चारों ओर खुशबू की तरह फैल कर पड़ोसी राज्यों को ईर्ष्या की आग में झोंक रही थी। चंदनपुर में चंदन के विशाल जंगल थे। जिसके कारण इसका नाम चंदनपुर था इसके अलावा यहां हीरे की खानें ...
कई प्रयोग किये गए हैं। इस समय के कहानीकारों में, मोहन राकेश राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, मार्कण्डेय, अमर कान्त मन्नू
प्रमुख प्रगतिवादी कहानीकार और उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं-
कहानीकारों की कहानियों में मनोवैज्ञानिक सत्य और चरित्र की वैयक्तिक विशिष्टता
जल्दबाज़ी में लिया गया निर्णय : अकबर बीरबल
प्रेमचन्द और जयशंकर प्रसाद से भिन्न एक अलग रास्ता बनाया, उस समय की
कथाओं से जोड़ते हैं तो कुछ विद्वान स्वामी गोकुल नाथ की चौरासी वैष्णवन की वार्ता
हैं,' अमरकान्त की 'डिप्टी कलक्टरी' आदि कहानियों में
इलाचन्द्र जोशी फ्राइड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त को साथ लेकर चलने वाले लेखक हैं।
सबेरे का वक़्त है। गंगा-स्नान के प्रेमी अकेले और दुकेले चार-चार छ-छ के गुच्छों में गंगा-तट से लौटकर दशाश्वमेध के तरकारीवालों और मेवाफ़रोशों से उलझ रहे हैं, मोल-तोल कर रहे हैं। दूकानें सब दुलहिनों की तरह सजी-बजी खड़ी हैं। कहीं चायवाला चाय के शौक़ीनों अमृत राय
मुंशी प्रेमचन्द को रखकर हम तीन चरणों में बाँटते हैं -
माँ को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे सुदर्शन